खो गईं
वेदना तो बहुत है,सम्वेदनाएँ खो गई
मौत तो दुगुनी हुईं,पर सांत्वनाएँ खो गईं
स्वार्थ का है बोलबाला,हर तरफ संसार में
प्रेम,ममता,स्नेह की संभावनाएं खो गईं।
बेईमानी और रिश्वत ने कुछ घेरा इस तरह
कागज़ों की परत पर सब योजनाएं खो गईं
विवाह मंडप तो सजा,पर दहेज की बलिवेदी पर
नव नवेली वधु की सब तमन्नाएं खो गईं।
धर्मगुरु,नेता,उपदेशक बहुत हैं इस देश मे
प्रवचन तो बहुत हैं,पर प्रेरणाएं खो गईं
भेद सारे खोल डाले ,ज्ञान से,विज्ञान से
मानव मानव न रहा,सब भावनाएं खो गई
रिश्तों की पावन सलिला,कुछ इस तरह गंदली हुई
तोड़ कर तट बंध को सारी सीमाएं खो गईं।
में विचरती ही रही सपनों के मिथ्या लोक में
चेतना जगी तो सारी कल्पनाएं खो गई