खोले हैं जज्बात के, जब भी कभी कपाट
लिखता हूं हर शब्द मैं ,सीधा सरल सपाट ।
खोले हैं जज्बात के, जब भी कभी कपाट ।
जब भी कभी कपाट,भाव टपके झर झरते।
कुछ तो लेते बाँच ,कई टिप्पणियां करते।
होता है जो सत्य,वही सम्मुख रखता हूं ।
दोहे में हर बात,सामयिक मैं लिखता हूं।।
रमेश शर्मा.