खोपक पेरवा (लोकमैथिली_कविता)
●दिनेश यादव~
अंगनामे
निमक गाछ पर भोरेभोर
चिडै-चुनमुनी
चुनचुन करैत छल
कहियो अइ डाइर त
कहियो ओइ डाइर
फूद्फुद् सेहो करैत छल ।
डेढियासँ सटल
काठक खोपमे
बन्द फाटक छल
ओइमे कच्छरैत पेरवासब
घुटूर घूॅ करैत छल
जोर-जोर सॅ डेन अपन
हिलबैत छल,
मालिकक ध्यान तनबाक लेल
टिनक चारीमे डेन
अपन बजारैत छल
आबाज सुनैवाला कियो नै छल।।
मलिकवाक कनकिरबा
उठिते खोपक फाटक खुजल
पेरवा फुर्रसिन उडल
ओकर उडानक कनिके कालक बाद
ग्राहक
आङनमे पहुचल
चारि जोडि पेरवा माँगलक
मलिकवाके टका थमहेलक
निर्दोष जोडिके पकैड
बिदा भेल,
घर पहुचते
हलाली कैयलक ।।
निम पर चिडैय
चुनमुन सदखनि करैत छल
मुदा खोपक पेरवा
कहियो फाटकमे बन्द त
कहियो किनबेसाहक
सामग्री बनल
जन्मेसँ आनक अधिन
पेरवासब
आब त खोप सेहो
घनघोर
बदलै लागल
मुद्दा ओकर स्वतन्त्रता
अखनो दोसरेके
हाथक डोर बनल
तईं खोपमे अखनो
फडफडाय पेरवा !