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28 Jun 2018 · 1 min read

खोता बचपन

दो वक्त की दाल- रोटी को है, देखा लाचार होता बचपन,
गुटके-बीड़ी और अगरबत्तियों में देखा धुंआ होता बचपन।

कूड़े के ढेर और गंदे इनालों में, स्व पहचान नित खोता बचपन,
कचरे में ढूंढ अठखेलियों को,सुबक सुबक कर रोता बचपन।

ढाबे, ठेले, रेस्तरां में देखा बर्तन धोता बचपन
बड़े बड़े घर कोठियों में, भाग्य रेखा मिटोता बचपन

पेंसिल, कॉपी,कांधे बस्ता नहीं, बोझ और ही ढोता बचपन
खेल खिलौने संगी साथी, रेड लाइट पर नित खोता बचपन।

नीलम शर्मा….✍️

Language: Hindi
2 Likes · 508 Views
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