#खोटे सिक्के
🙏 जब वुहानव महारोग जिसे कोविड१९ भी कहा जाता है, अपने भयंकरतम रूप में विचर रहा था, तब लिखी गई थी यह ●आँखिन देखी●
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★ #खोटे सिक्के ★
लुधियाना-फिरोज़पुर रेल मार्ग पर मोगा और जगराओं से भी पहले एक स्टेशन है ‘बद्दोवाल’। स्टेशन से अधिक दूर नहीं है गांव ‘पमाल’। यहीं के निवासी श्री मुंशीराम शर्मा जी के पुत्र थे ‘पंडित शिवकुमार शर्मा’। गेहुंआ रंग, छोटा कद, कसरती बदन, सिर पर छोटे-छोटे बाल। कड़वा सच बोलने के अभ्यासी। यही कारण था कि उनके मित्र बहुत कम थे। परंतु, इसी कारण उनका शत्रु तो संभवतया कोई था ही नहीं। निर्बलों की सहायतार्थ बहुधा कंधे पर हॉकी की छड़ी रखा करते थे। वे लुधियाना नगर में अपने समय के प्रिंटिंग प्रेस के श्रेष्ठ नहीं सर्वश्रेष्ठ कम्पोज़ीटर थे। पहली पत्नी की मृत्यु हो चुकी थी। दूसरा विवाह अभी हुआ नहीं था। यह १९६५ की बात है।
उन्हीं दिनों पाकिस्तान ने कश्मीर की ओर से भारत पर आक्रमण कर दिया तो भारत के यशस्वी प्रधानमंत्री श्री लालबहादुर शास्त्री जी के रणघोष पर भारतीय सेना फिरोज़पुर सीमा से लाहौर के उपनगर बर्की तक जा पहुंची। तब सुरक्षा कारणों से रेलमार्ग परिचालन को सीमित कर दिया गया था। प्रातः पाँच बजे लुधियाना से फिरोज़पुर को जाने वाली सवारी गाड़ी जगराओं से ही वापस लौटने लगी। दैनिक यात्री उसी गाड़ी से जाते और उसी गाड़ी से नौ बजे तक वापस लुधियाना लौट आते। सैंकड़ों लोग रात लुधियाना स्टेशन पर विश्रामालय में और फिर दिन निकलने से पहले ही प्लेटफार्म पर आन पहुंची गाड़ी में जाकर सो जाते।
दिनोंदिन यात्रियों की संख्या में कमी आती गई क्योंकि युद्धविराम चाहे हो गया था परंतु, रेलगाड़ियों का परिचालन महीनों तक नियमित नहीं हुआ था और तब सभी काम-धंधे शिथिल हो गए थे।
उन दिनों पंडित शिवकुमार शर्मा डॉक्टर गुज्जरमल रोड पर स्थित रॉक्सी प्रिंटिंग प्रेस में नौकरी करते थे। उनके साथ उनका एक शिष्य भी वहीं कार्यरत था। काम इतना कम हो गया था कि उनका शिष्य भी दिनभर काम कम और विश्राम अधिक किया करता।
जब ऐसे ही कुछ दिन बीते तो एक दिन संध्या समय प्रेस के स्वामी श्री प्राणनाथ भंडो को पंडित जी ने अपना अटल निर्णय सुना दिया कि “मैं कल से काम पर नहीं आऊंगा।”
श्री प्राणनाथ ने पूछा, “क्यों?”
तो उत्तर मिला कि, “मैं ब्राह्मण हूँ भिखारी नहीं जो बिना काम किए ही पगार लेता जाऊं।”
तब प्रेस के स्वामी श्री प्राणनाथ का कथन था कि “पंडित जी, मैं भी क्षत्रिय हूं कोई उठाईगीरा नहीं कि जब काम हुआ तो नौकर रख लिया और जब काम कम हुआ तो निकाल दिया।”
पंडित जी ने भी दोटूक कह दी कि “ठीक है, मेरी पगार मनीआर्डर से भिजवाते रहिएगा। जब काम आ जाए तो मुझे चिट्ठी लिख देना मैं खोटे सिक्के की तरह लौट आऊंगा।”
और जब काम सुचारू होने लगा तब श्री प्राणनाथ भंडो ने पंडित जी को जो पोस्टकार्ड लिखा उसमें केवल एक पंक्ति लिखी थी, “खोटे सिक्के जी, वापस लौट आओ।”
और पंडित जी लौट आए।
मैं उन दोनों महानुभावों को सम्मान और आदर से स्मरण किया करता हूँ।
आज ‘वुहनिया महामारी’ के समय जो प्रवासी श्रमिक अपने घरों को लौट रहे हैं उन्हें सम्मान से देखें। इनमें से अधिकांश पंडित शिवकुमार शर्मा जी जैसे खोटे सिक्के हैं, आप जब पुकारेंगे यह लौट आएंगे।
~ ५-५-२०२० ~
#वेदप्रकाश लाम्बा
यमुनानगर (हरियाणा)
९४६६०-१७३१२