खोज सत्य की जारी है
कर्मों का फल मिलता सबको, हर दीवाली होली में।
कुछ को सुख मिलता बोली में, कुछ को मिले ठिठोली में।।।
कुछ घूमें नंगे अधनंगे, कुछ पर आफ़त आती है,
कुछ को मौज मिला करती है, प्राणप्रिया की चोली में।।
कोई दुर्घटना में मरता, कोई बस धक्के खाता ।
टिकट किसी का कट जाता है, और किसी को मिल जाता ।।
कुछ की मांग उजड़ जाती है, कुछ को मिल जाते प्रीतम,
कुछ के गीत सुपरहिट होते, कोई पुरस्कार पाता।।
अपना अपना भाग्य सभी का, सबके सुख-दुख हैं न्यारे।
कुछ से दुनिया नफरत करती, कुछ हैं आंखों के तारे।।
अकर्मण्य कुछ कर्म न करते, अहोरात्रि कुछ कर्मनिरत,
तुलसी सूर कबीर निराला, सरस्वती के हरकारे।।
हर हरकारा यही बताता, भाग्य कर्म से बनता है।
कर्मवीर का युद्ध हमेशा, भाग्यबली से ठनता है।।
त्याग फलाशा कर्म करें हम, गीता का सन्देश यही,
हर चुनाव में ठग ली जाती, भोली-भाली जनता है।।
भटक रही सारी मानवता, खोज सत्य की जारी है।
सीख सत्य सम्भाषण की ही, देता हर अवतारी है ।।
पर असत्य किसकी रचना है, कोई नहीं बता पाता,
जगदात्मा अर्द्धनारीश्वर, वह ही दुनिया सारी है।।
महेश चन्द्र त्रिपाठी