खोकर के अपनो का विश्वास ।……(भाग- 2)
आज मैं गलती कर बैठी हूँ,
खोकर के अपनो का विश्वास,
परियों सी महलो में रहती,
स्वतन्त्रता का विचरण थी करती,
हर ख्वाहिश पहले भी मिलती,
जिद भी यों ही पूरी होती,
आँसू छल्के पलके न भीगी,
मार्मिक ह्रदय से लुटाते प्यार,
पिता की ऐसी प्यारी बेटी,
‘माँ’ की माँ कहलाये दुलारी बेटी,
समझ न सकी छोटी सी बात,
प्रेम में ऐसी सुध-बुध खो गई,
मुड़ कर न देखी एक बार,
छूटा वह मेरा संसार ।……(3)
आज मैं गलती कर बैठी हूँ,
खोकर के अपनो का विश्वास,
प्रेम को जितने मैं चली थी,
ठुकरा कर कितनों का प्यार,
ऐसा स्वार्थ मुझमें जगा था,
अन्धकार में खो गया जहांँ,
लूटाने आया न धन दौलत,
खंजर से किया पीठ पर वार,
विष दिया घोल ह्रदय में,
छलिया कर गया विश्वास में ह्रास,
कदम मेरे रुके न फिर भी,
बावली सी होकर बह गई ,
मेरी अपनी दुनिया ढ़ह गई,
खो गया मेरा संसार।………..(4)
रचनाकार-
बुद्ध प्रकाश ,
मौदहा हमीरपुर ।