खोई मुस्कान
******* खोई मुस्कान *******
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जब से हुआ कोरोना मेहरबान,
फीकी पड़ गई चेहरे की मुस्कान।
लूटता है मानव मानव को आम,
खुली सरेआम लुटेरों की दुकान।
बेबसी को समझ रहे मजबूरियाँ,
जिन्दगी में जैसे आया तूफान।
चेहरे लगें क्रोध में लाल गुलाब,
धरती हुई हो जैसे लहूलुहान।
हैवानियत का लगने लगा पहरा,
खोती जाती इंसानियत पहचान।
गम भरी जिंदगी गमगीन हो गई,
हर शख्स नजर आता है परेशान।
मनसीरत ढूँढता है खोई मुस्कानें,
लोभ में आदमी बना नादान है।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)