खेल हार जीत का
दिनांक 18/6/18
छंदमुक्त कविता
जिन्दगी है
मैदान
इन्सान
खिलाड़ी
खेल खिलाती है
किस्मत
कभी हार
तो कभी
गले लगते है
पदक
जीत पर
न गुमान करो
ए इन्सान
हार पर
न हो हताश
ये पदक आज
उसके गले है तो
कल होगा
तुम्हारे
भेदते रहो लक्ष्य
मत हटो
मेहनत और लगन
से पीछे
हार भी
हार जाऐगी
तुम्हारे आगे
वरण करेगा
पदक तुम्हारा
पदक की
लालसा में
ईष्या मत
पालना
मेरे दोस्त
करो प्रतिस्पर्धा
ईमान से
पदक है पहचान
प्रतिष्ठा का
करो अपना नाम
ऊँचा और ऊँचा
स्वलिखित लेखक
संतोष श्रीवास्तव भोपाल