खेल किस्मत के
है खेल
निराले
भाग्य के
कहीं खुशी तो
कहीं गम
है नियति
जन्म है
तो निश्चित है
मृत्यु
है
विधि का
विधान ये
है उत्पत्ति तो
है अंत भी
है
बेटी का
जन्म
नियति
पालो पोसो
हो जाए
विदाई
घर से
है नियति
माँ बाप की
सींचो अंगना में
बच्चे
पढाओ
लिखाओ
लगी नौकरी
हुई शादी
लग गये पंख
अकेले
रह गये
बूढ़े दो
स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल