खेल कितने है ये जिंदगी तेरे
खेल कितने है ये जिंदगी तेरे
एक बार तो हम को बता दें
पल में ऐसी पल में वैसी
जीने की सही राह दे
कभी उलझाती, कभी सुलझाती
राहों से ना मुकरने दे
जीवन के हर पन्ने को
अपना बनाने की हिम्मत दे
मुरझाए हुए लम्हों को
कतरा कतरा पीने दे
आँखों से निकलती धारा से
कभी दर्द भी दिल के बहने दे
कुदरत के हंसी रंगों को
सपनों में तू उतरने दे
पल भर का है,सफ़र तेरा
यादगार इसे तू बना दे
फिसलते हुए वक्त पे
लूटने की हम को सलाह दे
क़ैद कर लूँ मुठ्ठी में उनको
बस परींदो जैसी उड़ान दे
गिले शिकवे ना रहे दिल में
शांति एसी फैला दे
हर ईर्ष्या से बचें हम
सुकून के चार पल दे
ऊँच -नीचता के वहम को
मन से तू निकाल दे
पल में ऐसी पल में वैसी
जीने की सही राह दे