“खेलो शब्दों की होली”
कितने फागुन बीत गये
कितनी बीती रसवंती होली
कितने बादल आये गुलाबी
कितनी बीती गीली होली
कितने टेसू उड़े गगन में
कितनी बीती मीठी होली
बीते इतने बरस हुए
कहाँ गयी बचपन की होली
ना तो अब वो फाग रही
ना वो टोली वाली होली
समय सुनिश्चित हो रखा है
बाद न उसके खेलो होली
नवरंगों को लेकर आयी
मादक गंधों वाली होली
समझ नहीं पा रही मैं
किसके संग खेलूँ होली
बचपन छूटा सखियाँ छूटीं
मैं तो खेलूँ यादों की होली
मन में भर उल्लास सभी
आओ खेलें प्रेम की होली
रंग बिरंगे रंगों को लेकर
खेलो सबके संग तुम होली
हाथों में पूये ले लो
खेलो भूखों संग होली
हँसी खुशी की पिचकारी ले लो
खुशियों की बौछार करो
मन मुटाव को मिटा हृदय से
खेलो सिन्दूरी होली
ढोल मंजीरे मृदंग बजाओ
मन में खुशियों के फूल खिलाओ
रंगों का मंगलगान करो
खेलो ठण्डे बयार की होली
गीत कविता छन्द लिखो तुम
मन में नया उमंग रखो तुम
कविता की पिचकारी से तुम
खेलो शब्दों की होली ….
©निधि…