“खेलो चाहे कितना भी”
खेलो चाहे कितना भी मेरे जज़्बातों से,
हार नहीं मानूँगी अपमान भरी बातों से,
नोचो मेरे अरमानों की कोमल कलियाँ ,
तोडो मेरे अस्तित्व की सुंदर डालियां,
हर बार खडी रहूँगी उतनी ही ताकत से ,
खेलो चाहे कितना भी मेरे जज़्बातों से,
ना तौल सका कोई , ना तौल सकोगे तुम ,
जाओ इतनी भी तुम में सामर्थय नहीं ,
जो नाप सको मेरे संयम और बलिदानों को,
गुरुर तुम्हे है अपनी बौनी मानसिकता पर ,
अपनी छद्म -शक्ति का दम नित भरते रहो ,
ना टूटी पहले कभी, ना तोड़ पाओगे कभी,
हर बार खडी रहूँगी उतनी ही ताकत से,
खेलो चाहे कितना भी मेरे जज़्बातों से ||
…निधि…