खेलती है कूदती है गजल
आज खेलती है कूदती है गजल
इसलिए बिंदास दिखती है गजल
तन्हाई में भी दूर चली जाती गजल
याद उनकी फिर से जगाती है गजल
हो गयी है रात अब सोने भी दो
आज बेहिसाब क्यूं थकी हुई है गजल
गीत प्यार का गुनगुनाने लगी गजल
गैर को अपना बनाने लगी है गजल
बेबफा से हुई हमदर्दी अनजाने में
इसलिये तो सँवरने लगी है गजल
हो खफा , जाओ न रूठ के वहाँ
जिस्म से जिस्म को मिलाती है गजल
फासले जो बीच में दीवार के
दूर उनको गिरा ढहाती है गजल
रूठ ना जाओ , चले आओ वापस
फिर तुझे प्यार से बुलाती है गजल
है मुहब्बत गजल को जान बूझ के
इसलिए तो गले से लगाती है गजल
आँख से आँसू गिर रहे बन बारिशें
लगता है जोर से रोयी है गजल
जिन्दगी हो जाए बोझ से बेदर्द जब
एक अनोखा ढंग सिखलाती है गजल
लाल पीली हो रही है क्यों गजल
खेल के खेल किसी से आई है गजल
मौत के बाद भी बाकी रह जाती यादें
इसलिए दरिया मे आग लगाती है गजल