खेती-बारी पर आधारित आठ गो दोहा
खेती-बारी पर आधारित आठ गो दोहा
■■■■■■■■■■■■■■■■■
पशुपालन बिनु खेत के, होला ईहे हाल।
जइसे रोटी साग बिन, बिना नून के दाल।।१।।
खेती-बारी छोड़ि के, खेलत बा जे तास।
नाश करी सब एक दिन, उपजी बड़की घास।।२।।
कीटनाशक के तू करअ् , कम से कम छिड़काव।
मनई रहिहें स्वस्थ आ, स्वच्छ रही हर गाँव।।३।।
छलनी मन जेकर रहे, ओकर नाव किसान।
सबके भोजन देत जे, भूखे करत बिहान।।४।।
समय समय बरखा भइल, लउकत खूब सुधार।
कि लागे असों ना रही, कर्जा अउर उधार।।५।।
भींजत बिनु गोदाम के, कीरा बाड़ें खात।
लोग मरत बा भूख से, नइखे अन्न बटात।।६।।
दुखवे के बदवे सुनीं, सुख आवे हे भ्रात।
हरियाली आवे जबे, जोतल बोवल जात।।७।।
हरियाली ई देखि के, मन गदगद बा आज।
चिरइन में चर्चा इहे, आयो रे ऋतुराज।।८।।
– आकाश महेशपुरी