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25 Apr 2023 · 1 min read

ख़ून जलता है कारख़ाने में

ये हुआ असलियत बताने में
मुश्किलें बढ़ गई ज़माने में

तब यह चूल्हा धुआँ उगलता है
खून जलता है कारख़ाने में

ग़म दहकते हैं इस क़दर दिल में
होंट जलते हैं मुस्कुराने में

ये करिश्मा नहीं तो फिर क्या है?
जी रहा हूं तिरे ज़माने में

सहमी सहमी हैं फाख्ताएं यहाँ
बाज़ बैठे हैं कुछ निशाने में

इश्क़ की जंग भी अजब शय है
जीत होती है हार जाने में

हम लगाएं गुहार अब किससे
अद्ल बिकने लगा है थाने में

हम फ़क़ीरी से लौ लगा बैठे
ठोकरें मारकर ख़ज़ाने में

जिस्म ‘अरशद’ लहूलुहान हुआ
बाग़बाँ से चमन बचाने में

1 Like · 274 Views
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