खुश्बू भरी शाम
*** खुश्बू भरी शाम ***
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खुश्बू से भरी शाम है,
अब जो न रही आम है।
यार दिलदार है आया,
बाकी नहीं कोई काम है।
तितलियाँ भी हैं उड़ रही,
भँवरों की फंसी जान है।
बागों बाग है दिल खिला,
जिसका न कोई दाम है।
मनसीरत बाज आये ना,
हाथों में पकड़ी जाम है।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)