खुशी
आतुर तेरे आलिंगन को।
मैं ही नहीं जग सारा है ।
अपनी मृगतृष्णा में तूने ।
जाने कितनों को मारा है।।
आती है तू नित सपनों में।
नित नूतन श्रृंगार किये ।
आ जाओ अब जीवन में।
कर में लेकर हार प्रिये ।।
उम्र कटी है अपनी सारी।
दुनिया के झंझावातों में।
दिन दिन भर तड़पा हूं मैं।
कभी नींद नाआई रातों में।।
रहती हो तुम सपनों में।
इस जग में हर प्राणी के।
पा न सका अब तक कोई।
हार गया तुम्हें तलाश के।।
यूं तो तुम सुंदर हो अति।
पर केवल कविता में ही।।
क्षण भर तो सुख देती हो।
लेकिन बस पल दो पल ही।।
परन्तु हाय रे! मानव ।
तू खुशियों हित मरता है।
कैसे होगी खुशियां हासिल।
प्रयास यही तू करता है।।
जय प्रकाश श्रीवास्तव पूनम