” खुशी में डूब जाते हैं “
ग़ज़ल
हँसी तेरे लबों पर हो नयन भी मुस्कराते हैं
इसी मनहर अदा से हम खुशी में डूब जाते है
छुआ तन तो थिरकता तन कठिन छूना किसी का मन
असल में प्यार हम अपना सदा झूँठा दिखाते हैं
रही है कल्पना सच से परे सब जानते हैं पर
समंदर के किनारे रेत के घर सब बनाते हैं
खिले सब फूल भी जाने बिखरना तो उन्हें है ही
भ्रमर डूबे हुए मद में यही सच भूल जाते हैं
“बिरज” पल पल सहेजे तो रमा है राम हम में ही
पढा है यह सुना है यह कहाँ मन को जगाते हैं
स्वरचित / रचियता :
बृज व्यास
शाजापुर ( मध्य प्रदेश )