खुशी पल भर नही देखे
जिगर पर चोट खा कर भी तेरे कूचे में आए है
दवा दे या ज़हर दे दे तेरे सपने सजाए है
खुशी का क्या ठिकाना हो अभी वो पास हैं मेरे
जमाने बाद देखो आज यूँ पहलू में आए है
सताया उम्र भर जिसने सताने अब नही आता
उठा लूँ नाज़ सब तेरे कहाँ खुद को छुपाए है
झगड़ती अब नही मुझसे भला क्या हो गया तुमको
तेरा खामोश रहना ही मुझे पलपल जलाए है
उलझ कर रह गया मैं तो किसी की मीठी बातों में
घड़ी जब आखरी आई मुझे ये दिल समझाए है
बहारें हैं अभी बाकी मगर सूना जहाँ मेरा
खुशी पल भर नही देखे डरे मंजर दिखाए है
किया है दफ़्न खुद को ही नही उंगली उठे तुम पर
तुम्हे बस देख लूँ जी भर कज़ा भी साथ लाए है
– ‘अश्क़’