खुशी -उदासी
एक उपवन के थे हम निवासी,
फूल व तितली दो ही साथी।
समय भी बदला मौसम भी बदला,
कभी खुशी थी कभी उदासी।।
फूल व तितली प्यार जताते,
इस संसार की हवा थे खाते।
कभी था मिलना कभी जुदाई,
इस खेल को वो समझ न पाते।।
आया पतझड़ फूल मुरझाया,
गया वक्त फिर हाथ न आया।
तितली को यूं ही विरह में जलना,
बोलो किसने खोया किसने पाया।।
पग-पग वक्त के साथ ही चलना ,
वरना फूल की तरह गिरकर गलना।
नदियों की धारा यो हो या झरना,
पछताने पर सिर्फ हाथ ही मलना।।
एक वक्त ऐसा भी आएं,
जहां धूप वहां छांव भी आएं।
दिल में अरमान भले ही रख,
पर कह देते सत्य नज़र मिलाएं।।
सतपाल चौहान।