खुशियों की सौगात
ऑथर – डॉ अरुण कुमार शास्त्री
टॉपिक – क्या खोया क्या पाया 2023 में
शीर्षक – खुशियों की सौगात
भाषा – हिन्दी
विधा – स्वछंद काव्य
नई – नई शुरुआत थी
बाईस के जाने से मन में अकुलाहट थी
लेकिन तेईस के आगमन से
तन मन में गर्माहट थी
बाईस में जो न कर पाया था
सोचा तेईस में पूरा कर लूँगा
कई अधूरे काव्य ग्रंथ थे
उन सब से अपना मन भर लूँगा
कैसे कैसे ख्वाब अधूरे चाहत के संग रह गए
बाईस जैसे तेईस निकला
जैसे फिसली रेत से बह गए
कण कण निकल पल पल निकला
सपन अधूरे रह गए
बीत रही है उम्र हमारी
हम बैठे ही रह गए
जनवरी आई और चली गई
ठंढ के संग वो कोहरा लाई
निकल सके न रजाई से राजा
हाँथ सेकते रह गए
बाईस में जो न कर पाया था
सोचा तेईस में पूरा कर लूँगा
कई अधूरे काव्य ग्रंथ थे
उन सब से अपना मन भर लूँगा
कैसे कैसे ख्वाब अधूरे चाहत के संग रह गए
बाईस जैसे तेईस निकला
जैसे फिसली रेत से बह गए
धीरे – धीरे वर्ष सुहाना
खाना पीना और सो जाना
नियम लिखे कैलेंडर पर थे
लिखे ही तो रह गए
एक दिन हमको गुस्सा आया
अपने आलसपन पे शरमाया
कर के कठोर मन को हमने फिर
राम देव का योग ध्यान अपनाया
पहन के खेल के जूते हम भी
दौड़ लगाने निकल गए
सच पूंछों तो उस दिन से हम
चकित चतुर स्वस्थ स्वाबलम्बी हो गए
बाईस जैसे तेईस निकला
जैसे फिसली रेत से बह गए
कण कण निकल पल पल निकला
सपन अधूरे रह गए
बीत रही है उम्र हमारी
हम बैठे ही रह गए