खुशियों का दौर गया , चाहतों का दौर गया
खुशियों का दौर गया , चाहतों का दौर गया
हम भी हैं नाखुश , अपनेपन का दौर गया
नाइंसाफी का दौर नया , नाउम्मीदी का शोर नया
नाकाबिल चरित्रों का दौर नया , नफरतों का दौर नया
पी रखी है सभी ने दो घूँट , नाफ़रमानी की
नादानी कर रहे सब , कामचोरों का दौर नया
वसंत आने के पहले पतझड़ का मौसम आया
नामुमकिन को मुमकिन कहने का दौर नया
पसंद है जिन्हें दूसरों पर बेइंसाफी का दौर
इन इंसानियत के तलबगारों का दौर नया
नियाज करते हैं उस खुदा से वो “अनिल”
उस खुदा के चाहने वालों का दौर नया
निस्बत थी उस खुदा से उसके चाहनेवालों की
अब क्या कहें इन दौलत के ठेकेदारों का दौर नया
फुर्सत नहीं है उन्हें दो वक़्त इबादत कर लें
नाशुक्रों का आया है कैसा ये दौर नया
खुशियों का दौर गया , चाहतों का दौर गया
हम भी हैं नाखुश , अपनेपन का दौर गया
अनिल कुमार गुप्ता “अंजुम”