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26 Aug 2020 · 1 min read

खुशहाल है तन की (भौतिक गरीबी) गरीबी, मन की बहुत बीमार

गरीबी संघर्ष का निशदिन, नया एक गीत गाती है
जीवन की पाठशाला है, मुझे जीना सिखाती है
बनाती आत्मनिर्भर है, मेहनतकश बनाती है
लाखों अभावों में भी यह, सुख से रहना सिखाती है
करती है खेतों में मेहनत, भवन सड़कें बनाती है
जोड़ती दीनबंधु से,पक्का रिसता बनाती है
लगी है कारखानों में, गटर में उतर जाती है
स्वाभिमान से रहती है गरीबी, शिकवा न शिकायत है
अपने हाल पर खुश है, पुरानी रिवायत है
भौतिक गरीबी है, दिल की अमीरी है
बहुत संतोष है मुझको, यह भी तो फकीरी है
सरकारी योजना बनती, गरीबी पर तरस खाकर
मिलकर भेंट हो जाती, भ्रष्ट मन के गरीबों पर
खुशहाल है तन की गरीबी, मन की बहुत बीमार है
भरता नहीं है पेट इनका, हरदम रहे उधार है
गरीबी एक शोषण है, अमीरों का पौष्टिक पोषण है

सुरेश कुमार चतुर्वेदी

Language: Hindi
7 Likes · 6 Comments · 419 Views
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