खुशनसीब
है खलिश सी एक बस इस सीने मे!
कोई यार नही हो ऐसा क्या जीने मे?
वो साथ भी न चल सके मयकदे तक,
फिर मजा नही है पिलाने औ पीने मे!!
मै खुशनसीब हू जो चार यार ही सही,
बस इतने काफी है,जिन्दगी के जीने मे!!
मै इतना अहसा फरामोश भी नही कि,
अहसान को छुपा कर न रखू सीने मे!!
उनकी मुहब्बत उनका खुलूस कायम है,
मेरे हर ज़ज्बात मे वो है धडकते सीने मे!!
चंद दोस्त ही काम आते है रूखसती पै,
बदनसीब वो जो महरुम इस सफीने मे!!
बोधिसत्व कस्तूरिया एडवोकेट,कवि,पत्रकार
202 नीरव निकुजं फेस-2,सिकंदरा,आगरा-282007
मो: 9412443093