खुशनसीबी
मैं तो सोज़े चमन का एक अदना सा बाशिंदा हूँ
आईना जानता है बजूद मेरा ओ, मैं जिंदा हूँ ।।
तुम समय देते हो अपना इस गरीब को जो भी
बस इसी बात का कायल मैं परिंदा हूँ ।।
दूरियाँ तो मिट न सकेंगी कभी
तेरे मेरे दरमियाँ, अफसोस न कर ।।
तू जानता है मुझे नसीब से
यही इल्म बा -ख़ुदा बेहद से ज्यादा उमदा है ।।
तारीख़ से कोई शिकवा करना न चाहिए
जो मिले दिल से उसे अपनाना चाहिए।।
चार दिन की ज़िंदगी है खुश रहा कीजिये
क्यूँ नाहक फजूल अपना दिल जलाइये ।।
अफ़्सोस वो मिला और फ़िर बिछुड़ गया
सोच सोच ये सब घुलते ही जाइये ।।
मुझसे तो पूँछिये कि मैं क्या क्या हूँ खो चुका
सिपाही हूँ वतन का बस अब वतन चाहिए।।
अल्फ़ाज़ मिरे तेरा दिल दुखा न दें अबोध*
मौका मिले तो मौला, कभी फिर से पुकारिये ।।