खुल के हॅसना, ज़िन्दगी में अभी भी बाकि है
ताल्लुक ज़माने कि रंगत से, वाकिफ होना बाकि है,
वजूद -ऐ -जिंदगी पाने कि, ख्वाहिश -ऐ -तमन्ना बाकि है..!
उसूल सैकड़ों है दुनिया मे, जनाजे उनके भी, कई गुजरने बाकि है..!
सूरज भी कभी -कभी गर्दिश मे नजर आता है,
उसका भी तसव्वुर होने, उलझी किरणों से बाकी है..!
जैसे डॉल्फिन निकलती है समुंदर से,
कुछ पल के लिए, पल-पल मे,
उसकी ही तरह आसमां का, रुखसार होना बाकि है… !
हर ख्वाब मुक़म्मल हो जाये, हर जश्न मुबारक हो जाये,
मेरी रग -रग का इन महफिले आलम से रूबरू होना बाकि है.. !
हां बाकि है, अब तक जो बीत गया बरसों मे,
हमें उस वक़्त का सही हर्जाना, हासिल होना बाकि है !!
मुनाफा मिल न सका कोई बात नहीं,
उन लम्हों का अब भी, हम पर जुर्माना बाकि है !
हम चाहते है सब चूख्ता हो,
जज्बातों का कोई तख्ता न हो,
ताकि मिले न मुश्किलें खुशियों मे, जीं लम्हों से गुजरना बाकि है..!!
कई ठोकरे पायी है दुनिया मे, मुस्कुराना तक हम भूल गए,
दिल से हँसना, खुल के जीना,
जिंदगी मे अभी-भी बाकि है… !!