खुला पत्र ईश्वर के नाम
खुला पत्र ईश्वर के नाम :
मेरे ईश्वर ,
मेरे प्रभु,
यह भावनाएँ,
यह उद्दगार मेरे दिल की
भीतरी सतहों में से
संवेदनाओं की गलियों में से
होती हुई तुम तक पहुँच रही हैं।
तुम तो अंतर्यामी हो
यह सृष्टि
यह ब्रह्मांड तो तुम्हारी ही कृति है ,
अपनी संरचना से तो
सब प्यार करते है ,
फिर क्यों ,
क्यूँ यह दूरियाँ,
यह अलगाव,
धरती तो माँ है ,
उसके इतने सारे हिस्से,
आसमान के तो
हिस्से नहीं होते
चाँद ,सूरज के भी नहीं ,
तारे क्या अलग दिशाओं में
झिलमिलाएँगे,
यह जातियाँ,
यह भेद भाव ,
कोई अमीर और
कोई ग़रीब क्यों है ,
बोलो , प्रभु, यह सब
छोटे बड़े , आप की ही
बच्चे है , फिर आप की
नज़र में फ़र्क़ क्यों है ?
बच्चों का मासूम बचपन हो
कोई अनपढ़ न रहे
घरों में, ढाबों में
जीवन के अंधेरों में ही
जीने की लालसा खो दें
जीवन के अर्थ बिना समझे,
आशा, उमंग खो दें
एक थका जीवन
आनंद का अर्थ ही न समझे ।
सब शिक्षा प्राप्त करें ,
ऊँचाइयाँ छुएँ,
कोई भूखा न हो,
कोई दवा के बिना
दम न तोड़े,
ईश्वर , तुम्हीं ने दुर्गा का
सृजन किया तब फिर क्यों नारी जाति का शोषण?
आए दिन, बलात्कार,
भ्रूण हत्या,
देवदासी से लेकर
वेश्या के रूप में
अपमान,
तिरस्कार।
नारी निर्मात्री है
फिर भी तिरस्कार की भागी!
नारी तो श्रद्धेय है।
मेरे अच्छे प्रभु , हर मौसम
प्यार का मौसम हो ,
सब तरफ़ ख़ुशियों का
त्योहार हो ,
आनंद उत्सव की बहार हो ।
डॉ करुणा भल्ला
@ Asmi Burman
@ Debanjali Adhikary