खुला आकाश
किस काम का
ये धर्म-वर्म
किस काम की
ये जात-वात!
जो मिटा
नहीं सके
मेरी भूख
तेरी प्यास!!
इस बेड़ी को
तोड़कर
इस पिंजरे को
छोड़कर!
उड़ जा-उड़ जा
रे पंछी
बुला रहा
खुला आकाश!!
Shekhar Chandra Mitra
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