खुद से ही अब करती बातें
खुद से ही अब करती बातें
मै रोज लिखूं दिल की बातें
ये कोरे कोरे पन्नों पर
अरमानों की सजती बातें,
जो बातें कह नही पाती हूँ
वो पन्नों पर लिखती बातें,
अब कागज कलम बने साथी
लंबी चलती अपनी बातें
कुछ फर्क मुझे पड़ता ही नही,
की कौन करे कैसी बाते।
कुछ ख़्वाब अधूरे हैं समझो
लफ्जो में अब सिमटी बातें
वो रोज ही हमसे पूछे अब
क्यूँ लिखती हो इतनी बातें
तुमसे करनी होतीं मुझको
हैं प्यार भरी कितनी बातें।।
शब्दों की मुझको समझ नही।
महसूस करुँ तेरी बातें।।
वो बातो बातो में देखो
अब कहते है मनकी बातें
ममता गुप्ता ✍️