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28 Apr 2020 · 1 min read

खुद से आंख चुराते क्यों हो ।

खुद से आंख चुराते क्यों हो ।
मन में भला छुपाते क्यों हो ।।

तन के भीतर है कस्तूरी ।
वन में मृग भटकाते क्यों हो ।।

सूखी सरिता की रेती में ।
गुमसुम नाव चलाते क्यों हो ।।

पत्थर से रस की आशा कर ।
अपना जिया जलाते क्यों हो ।।

जिसने दूरी बना रखी है ।
उसको पास बुलाते क्यों हो ।।

जान बूझकर जो सोया है ।
उसको यार जगाते क्यों हो ।।

जो दुश्मनी बनाकर बैठा ।
उससे प्यार जताते क्यों हो ।।

जिससे पर का घर जल जाए ।
ऐंसी आग लगाते क्यों हो ।।
– सतीश शर्मा ।

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