खुद में अब आप दिखाई देती है
मां इस एक वाक्य में हमारी पूरी दुनिया समायी है
मां को कैसे व्यक्त करना जिसने हमें दुनिया दिखाई है..
एक कविता मैं प्रस्तुत कर रही हूं,यह सिर्फ मेरी ,आपकी नहीं अमूमन हर बेटी की यही कहानी है
जैसे जैसे अनुभव बढ़ता है,समझ आनें लगता है कि
सचमुच मैं भी मां जैसी ही हूं..
तमाम उम्र नख़रें दिखाने के बाद
जरूरत से ज्यादा अकड़ने के बाद
मायके से ससुराल विदा होने के बाद
आंखों से आंसू बहाने के बाद
ससुराल को अपना घर बनाने के बाद
बहूरानी से मां बन जाने के बाद
माथें पर थोड़ी झुर्रियां आनें के बाद
प्यार, दुलार, ममता लुटाने के बाद
आंखों को थोड़ा झुकानें के बाद
पहले नादान होने के बाद
फिर नादानी खोने के बाद
आपने जो तब कहा था
वह मुझे आज सुनाई देती है
मुझे खुद में अपनी मां दिखाई देती है ।।
मां आपकी वह कमियां
जिनसे मैं तब शर्माती थी
धीरे-धीरे गौर किया तो
इन सबको खुद में पाती हूं
सुपर मॉम से मॉम हुई थी
आप पर मैं तब झल्लाई थी
सच कहती हूं सुपर मॉम तो
मैं भी कभी नहीं बन पाई
जाने मेरी कितनी उम्मीदें थी
आपसे जो पूरी ना हो पाई थी
कसम लगे मुझे मेरे बच्चों की
मुझसे भी ना पूरी हो पाई
सच कहा था अपनें
अनुभव सब सीखा देती है
मुझे खुद में
कभी -कभी आईने के सामने
जब मैं गोल बिंदी लगाती हूं
उस चटक लाल बिंदी में मैं
तुझको ही तो सामने पाती हूं
काश ! यह सब जब आप यही थी
आप से सीधे सब कह पाती
काश! तेरे आंचल में छुप कर
फिर वही लाड़ जतला पाती
सच कहते हैं लोग भी देखो
वक्त सब सीखला ही देता है
आपने जो उस वक्त कहा था
मां वो सब आज सुनाई देती है
सच मानों मां मुझे खुद में
अब आप दिखाई देती है ।
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सुनीता जौहरी
वाराणसी
विनीत पंछी से प्रेरित एक कविता