खुद पर गुमान कैसा है
ख़ुद पर गुमान कैसा है
अब ये इंतकाम कैसा है
जब फ़िदा हो दिल दुश्मन पर
तो हाथों में ये जाम कैसा है
जब खिंज़ा हो हर तरफ
तो बागों में ख़ियाबां कैसा है
खिंज़ा–पतझड़
ख़ियाबां–फूलों की क्यारी
तब्बसुम है चेहरे में खिली तो
फिर ख़लिश का नाम कैसा है
तब्बसुम–मुस्कराहट
ज़फ़र में हार अपनी ही है
तो जीत का नाम कैसा है
ज़फ़र–जीत
जब करना ही था दूर खुद से
तो अब यादों का नाम कैसा है
जब मयकदा ही ठिकाना हो
तो जानी की गली का नाम कैसा है
लबों से फ़ासला बढ़ा लिया हो हँसी ने
तो मासूम लबों पर हंसी का नाम कैसा है
घर कर बैठी हो उदासी सिने में
तो दिल के बे ग़म होने का नाम कैसा है
भूपेंद्र रावत
25।08।2017