खुद पर अफ़सोस
रह रहकर खुद पर अफ़सोस हुआ,
चाहा ज़िंदगी से बढ़कर मैंने जिसे,
जब आँखें जागी तो मैं बेहोश हुआ,
अब कोई फितूर, असर क्यों करता नहीं,
किस से दूर जाऊ, क्यों सरफरोश हुआ,
जो हुआ सो हुआ मन कहता नहीं,
जब जब आँखें बही, मैं मदहोश हुआ,
रह रहकर खुद पर अफ़सोस हुआ,
थमता दीखता नहीं तूफ़ान सीने में,
दिल पर हाथ रखा तो आखों में आक्रोश हुआ,
तनहा शायर हूँ