“ खुद पढ़ना है तो अपने बच्चों को पढ़ाओ ”
( संस्मरण )
डॉ लक्ष्मण झा “ परिमल “
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कभी हम बच्चों के शिक्षक बन जाते हैं और कभी बच्चे हमारे गुरु बनकर हमें एक अनोखी शिक्षा प्रदान करते हैं ! मैंने कभी भी अपनी शिक्षक की भूमिका से जी नहीं चुराया ! बच्चों को प्रारम्भिक अवस्था से अपना अनुभव ,अपना संस्कार और अपने गुणों को भरना प्रारंभ कर दिया ! ड्यूटी के बाद सम्पूर्ण समय मेरे बच्चों का होता था !
मेरी बिटिया आभा का जन्म 1976 में हुआ था और मेरे दोनों जुड़बा पुत्र राजीव और संजीव का जन्म 1977 में ! चलना भी जब राजीव और संजीव के वश में नहीं था उसी समय 1979 में उनलोगों को मिलिटरी अस्पताल गया (बिहार) ले गया था ! अपनी ड्यूटी के बाद मेरा सारा समय अपने बच्चों में समर्पित रहता था !
एक साल ही गया( बिहार) की धरती से जुड़े रहने का सौभाग्य प्राप्त हुआ ! वर्ष 1980 में मेरी पोस्टिंग मिलिटरी अस्पताल पठानकोट पंजाब में हो गई ! सबके सब हमलोग पठानकोट चले गए ! आभा 4 साल की हो गई थी ! उसकी पढ़ाई भी प्रारंभ हो गयी थी ! वहीं मॉडल टाउन में के 0 जी 0 में दाखिला दिलबा दिया था ! ड्यूटी मेरी 2 बजे तक होती थी ! उसके बाद मैं आभा को पढ़ता था ! बस राजीव और संजीव अब कुछ बोलना सीख गए थे ! आभा के साथ उनकी भी मौखिक पढ़ाई हो जाया करती थी !
1981 में फिर मेरा स्थानांतरण हो गया ! मेरी पोस्टिंग मिलिटरी अस्पताल किरकी (खड़की पुणे ) हो गई ! उस समय मिलिटरी अस्पताल का एक सेक्शन अस्पताल देहू रोड में था ! वहाँ से मुझे देहू रोड में टेंपोरारी ड्यूटी भेजा गया ! इंद्राणी दर्शन में मुझे फॅमिली कॉर्टर मिल गया ! छोटा अस्पताल काम कम ! लगातार पोस्टिंग के आधार पर आभा का दाखिला केन्द्रीय विध्यालय देहू रोड हो गया ! राजीव और संजीव डी 0 ओ 0 डी नर्सरी स्कूल में पढ़ने लगे ! और अधिकाशतः उनलोगों को मैं पढ़ाने लगा !
मेरी प्रथम प्राथमिकता ड्यूटी और दूसरी प्राथमिकता बच्चों को पढ़ना ! उनको पढ़ना ,मनोरंजन करना ,खेल खेलाना ,रविवार को श्यामल थिएटर में सिनेमा दिखाना ! छूटी के दिनों में जमकर पढ़ाना ,उनके साथ रहना ! इन दिनों मेरी धर्मपत्नी आशा झा का सहयोग भी सराहनीय था ! पढ़ाई के दौरान मुझे कभी -कभी उग्र भी होना पड़ता था ! पर कुछ समय के उपरांत प्रेम के सागर उमड़ पड़ते थे !
ठीक एक साल के बाद मुझे वापस मिलिटरी अस्पताल खड़की पुणे आना पड़ा ! आभा का भी मुझे केन्द्रीय विध्यालय देहू रोड से केन्द्रीय विध्यालय गणेशखिंड पुणे स्थानांतरण कराना पड़ा ! बाद में कुछ दिनों के लिए मुझे अड्वान्स मिलिटरी ट्रैनिंग के लिए लखनऊ जाना पड़ा ! और मेरी पत्नी आशा झा ने राजीव और संजीव का भी केन्द्रीय विध्यालय गणेशखिंड पुणे में प्रवेश करा दिया ! मेरी अनुपस्थिति में मेरी धर्मपत्नी ने अपना फर्ज निभाया और उनकी देख -रेख में उनलोगों की पढ़ाई चलती रही !
अब इन तीनों को अच्छे नंबर के आधार पर आर्मी स्कालर्शिप मिलना प्रारंभ हो गया ! लखनऊ से लौटने के बाद 1984 में मेरी पोस्टिंग 321 फील्ड एम्बुलेंस चांगसारी गोहाटी असम में हो गई ! मुझे अपने परिवार को नारंगी में रखना पड़ा ! Saturday और Sunday मैं छूटी ले लेता था और बच्चों को खूब पढ़ाता था ! यहाँ पर मैंने एक नया प्रयोग किया ! सब विषयों को मैंने इंग्लिश मीडियम में आभा ,राजीव और संजीव को लिखाना प्रारंभ कर दिया ! मुझे भी दिन रात पढ़ने पड़े ! उनको भाषण देने का हुनर भी मैंने सिखाया ! वहाँ अच्छे नंबर से वे पास होते गए और हरेक साल स्कालर्शिप उन्हें मिलता गया !
1987 में मिलिटरी अस्पताल बरेली और 1990 में मिलिटरी अस्पताल जम्मू तक मैंने ही पढ़ाया ! 1993 से 1997 तक मैं शिक्षक बना रहा ! अब उनके कॉलेज के दिन आ गए थे ! सब बच्चों ने अपने -अपने मुकाम को हासिल कर लिया ! मैं और मेरी धर्मपत्नी आज गर्व से कहते हैं कि बच्चों का भविष्य निर्माता माँ और पिता होते हैं ! उनको पढ़ाने से बुजुर्गों का भी ज्ञान बढ़ता है ! मैं तो अपने बच्चों को अपना शिक्षक मानता हूँ ! आज वे हमारे मार्गदर्शक बन गए हैं ! आज जो कुछ सीख पाया उन्हीं के किताबों से ही सीख पाया हूँ !
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डॉ लक्ष्मण झा “ परिमल “
साउन्ड हेल्थ क्लिनिक
एस 0 पी 0 कॉलेज रोड
दुमका
झारखंड
11.02.2023