खुद को समझ सको तो बस है।
खुद को समझ सको तो बस है।
भटक भटक कर थक जाओगे,
चाहत कुछ है कुछ पाओगे,
जो पाया संतोष करो भी,
अपने मन को समझाओगे,
बाहर मरूथल का शासन है,
भीतर का जग सरल सरस है,
खुद को समझ सको तो बस है।
उलझे हुए सभी धागों का,
तेरे मन के बीच सिरा है,
खोज रहा है जो तू बाहर,
मणि वो मन के बीच धरा है,
प्यासा रहना नियति बना ली,
जबकि खुद में ज्योति का रस है,
खुद को समझ सको तो बस है।
कैसे जाना है भीतर ये,
कोई सिखा नहीं पाएगा,
कुछ बातें ऐसी हैं जग में,
कोई बता नहीं पाएगा,
काम बहुत ही दुष्कर है ये,
काम बहुत ये सहज सरस है,
खुद को समझ सको तो बस है।
कुमार कलहंस।