खुद को खुद में ही
स्वयं की बातों से उलझती
खुद से ही हल पा सुलझती
स्वयं से ही स्वयं ही झगड़ती
बैचैन मन से नहीं चैन पाती
पुनः तानो-बानों में उलझती
न उम्र की ग़लती मै मानती
न जन्म को कसूरवाद ठहराती
कोशिश नयन मींच हल ढूंढ़ती
कश्मकश जिंदगी में लगी रहती
खोल नेत्र कलम थाम लिख लेती
लिख एक -एक पन्ना भरती
मन का बोझ हल्का यूं करती
सांस चैन की ले मूंदे नैन सोती।
-सीमा गुप्ता