खुद को खुद में ही
खुद को खुद में ही
स्वयं की बातों से उलझती
खुद से ही हल पा सुलझती
स्वयं से ही स्वयं ही झगड़ती
बैचैन मन से नहीं चैन पाती
पुनः तानो-बानों में उलझती
न उम्र की ग़लती मै मानती
न जन्म को कसूरवाद ठहराती
कोशिश नयन मींच हल ढूंढ़ती
कश्मकश जिंदगी में लगी रहती
खोल नेत्र कलम थाम लिख लेती
लिख एक -एक पन्ना भरती
मन का बोझ हल्का यूं करती
सांस चैन की ले मूंदे नैन सोती।
-सीमा गुप्ता