खुद को कई टुकड़ों में बिखेर दूँ क्या ?
खुद को कई टुकड़ों में बिखेर दूँ क्या ?
तभी खुश होओगे, हमारे दुख को ढोओगे ?
अभी जो जान बांकी है, उसे भी तुम्हें दे दूँ क्या ?
साल भर टेबल पे तुम्हारे अन्न का रेलमपेल है
चार दिन का उपवास -रोजा फिर वही खेल है
हमारी आंते सूखी है हमारी रातें रोई
अब दिन का सूरज भी तुम्हें दान दूँ क्या ?
…सिद्धार्थ