खुद की तलाश
कई रोज़ हुए
अपने आप से मुलाकात नहीं हुई
चलते-चलते यक़बयक़
कहीं गुम हो जाती हूं
लौट जाती हूं बार-बार
यादों के धुंधले आइने के सामने
जहां मेरी शख्सियत
का एक मुकाम हुआ करता था
मेरे व्यक्तित्व का हर पहलू
मेरे अपनों की चाहत से
सराबोर हुआ करता था.
न जाने कहां गए वो दिन,
वो लोग,जिनसे मेरा वजूद कायम था
अब तो मैं केवल एक
बेजान बुत हूं