“खुद की तलाश”
🌷खुद की तलाश🌷
“““““““““““`
( छंद मुक्त कविता )
=============
खुद की तलाश में
निकला जब मैं आज ,
मायूस सा हो गया !
कुछ भी नहीं था ऐसा ,
जो होता कुछ ख़ास ,
जो दिला पाता मुझे
औरों से हटकर….
एक नई पहचान ,
जिस संचित पूंजी को
लगा पाता मैं….
जन कल्याण के कार्यों में ,
दीन दुखियों की सेवा में ,
पर आत्मावलोकन से
लगता है मुझे ,
नहीं प्राप्त कर पाया हूॅं
अभी तक….
ऐसा कोई मुकाम ,
जिससे आ सकूॅं मैं
देश-दुनिया के काम ! !
पर हार नहीं मानूॅंगा….
कभी इस ज़िंदगी से !
असीम संभावनाओं से
भरी है ये ज़िंदगी ,
भले ही ना मिल सकी हो
कुछ ख़ास इतनी जल्दी ,
पर मुसलसल प्रयास से
एक दिन अवश्य ही ,
मिल जाएगी कामयाबी ! !
बस, कर्तव्य पथ पर
आगे बढ़ते जाना है !
पूरे लगन व मेहनत से ,
आत्मविश्वास को जगाकर ,
दृढ़ संकल्पित होकर ,
राह के सारे कंटकों को
चुनकर , हटाकर ,
जीवन के सफ़र को
यादगार बनाकर ,
नेकी और ईमानदारी से ,
प्रतिकूल परिस्थितियों में भी ,
पथ पर अटल, अडिग रहकर,
बुलंद हौसलों से ,
अन्य पथिकों के
कदम में कदम मिलाकर ,
एकलव्य की तरह
लक्ष्य पे निशाना साधकर ,
मंज़िल का दीदार करना है!!
चुनौतियाॅं बहुत हैं ज़िंदगी में ,
खुद की पहचान गुम सी है !
पहचान बनाने की धुन सी है !
और वक्त ज़ाया नहीं करनी है !
ये संसार तो चकाचौंध सी है ! !
ज्ञात होता खुद के तलाश से ही
कि हम खड़े हैं कितने पानी में ,
पता चलता वास्तविकता की ,
खुद में सुधार के गुंजाइश की ,
चकाचौंध दुनिया के साॅंचे में
खुद को भी ढालने, सॅंवारने की ,
अपने अंतर्मन में झाॅंकने की ,
सबकी अपेक्षाओं पे खड़े उतरकर….
एक हॅॅंसती खेलती दुनिया बसाने की!!
© अजित कुमार “कर्ण” ✍️
~ किशनगंज ( बिहार )
( स्वरचित एवं मौलिक )
दिनांक :- 18 / 05 / 2022.
प्रेषित :- 04 / 07 / 2022.
~~~~~~~~~~~~~~~~~~