अपने पर भरोसा
जैसे ही गगन ने सड़क के किनारे , पेड़ के नीचे ,दोनों घुटनों को मोड़कर छाती से लगाए व्यक्ति के ऊपर कंबल डाला,वह झट से उठ बैठा। उसने कंबल अपने ऊपर से अलग कर दिया और बोला,” बेटा ,हम भिखारी नहीं हैं। अपनी कमाई की खाता हूँ । मुझे किसी की दया की कोई जरूरत नहीं है। भले ही मैं लँगडा हूँ।”
हाँ, एक बात और, “लँगड़ा मैं पैर से हूँ।हिम्मत से नहीं।”
गगन बोला, मैं आप पर कोई दया नहीं दिखा रहा। मुझे लगा कि आप जनवरी की इस कँपकपाती सर्दी में खुले में लेटे हैं तो मानवता के नाते आपकी मदद की जाए।मैंने बस वही किया। अगर आपको बुरा लगा,तो साॅरी बोलता हूँ।
उसने कहा, बेटा मुझे आपकी मदद नहीं चाहिए। आपने इंसानियत के नाते मेरी मदद करने की कोशिश की, उसके लिए धन्यवाद।
मैं यहाँ, मंदिर के सामने अपनी अगरबत्ती, फूल , नारियल आदि बेचने की दुकान लगाता हूँ। उससे जो मिलता है, गुज़ारा कर लेता हूँ।मेरी जरूरतें बहुत कम हैं।
गगन ने उस व्यक्ति के हाथ जोड़े और कंबल लेकर वहाँ से यह सोचता हुआ चलता बना कि आज भी दुनिया में अपनी मेहनत से जरूरतें पूरी करने वाले लोग हैं। सभी फ्री का सामान नहीं चाहते।
डाॅ बिपिन पाण्डेय