खुदा याद आया …
जब जिंदगी में खुशी थी तब लिया न खुदा का नाम ,
मगर जरा गमों से सामना क्या हुआ खुदा याद आया।
गुनाह जब किए तो किए छुप छुपके के देखे न कोई ,
मगर जब नतीजा आया सामने तो खुदा याद आया।
उम्र भर बांटते रहे खुदा को मजहबी दीवारें खड़ी कर,
मगर इंसानियत से पड़ा वास्ता तो खुदा याद आया।
सपुर्द ए खाक कर आए जब अपने किसी अजीज को ,
तब इंसानी जिस्त की हकीकत औ खुदा याद आया।
खुदा की दी हुए थी जिंदगी और खुदा को ही भूल गए ,
मगर आ खड़ी हुई सामने मौत तब खुदा याद आया।