खिड़की
ग़मों से तपती हुई
धूप में जलता हुआ ,
अश्क़ों के जाम में
दर्द उफनता हुआ ,
निग़ाह से आसमां की
बूंदें सी ढलक चली ,
तुझे पाने की चाहत में
ख़्वाब की खिड़की खुली
ग़मों से तपती हुई
धूप में जलता हुआ ,
अश्क़ों के जाम में
दर्द उफनता हुआ ,
निग़ाह से आसमां की
बूंदें सी ढलक चली ,
तुझे पाने की चाहत में
ख़्वाब की खिड़की खुली