खिल गया मन का कोना-कोना
खिल गया मन का कोना-कोना
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खिल गया मन का कोना-कोना,
दूर हुआ दुखी दिल का रोना।
कोशिशों ने भी मात ही खाई,
काम नहीं आया जादू – टोना।
कैसा भी हो बाहर का मौसम,
जीवन मे कभी उदास न होना।
दिल तो तेरे सरोकार कर दिया,
नाजुक दिल है कभी ना खोना।
कालचक्र का पहिया है घूमता,
भार गमों का धीरज से ढोना।
पाप-पुण्य की गठरी है भारी,
पाप को सदा अमृत से धोना।
मनसीरत मानवता का प्रेमी,
बीज नफ़ासत के सदा बोना।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)