खिलौने
सिर्फ़ और सिर्फ़ खिलौने
उसके हर तरफ़ खिलौने ही खिलौने
किताबें नहीं, बस खिलौने।
वो स्कूल नहीं जाता था
पढ़ाई-लिखाई नहीं करता था।
वो गाड़ियों के पीछे दौड़ता था
हँसते हुए कहा करता था
“साब, एक खिलौना ले लो”
अज़ीब बचपन था उसका
जिसमें खिलौने तो थे
मगर कोई खेल न था।
-जॉनी अहमद ‘क़ैस’