खिले फूल मुरझाने लगे
**खिले फूल मुरझाने लगे**
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खिले थे फूल हैं मुरझाने लगे
भौंरें घर को लौट जाने लगे
दिलबर सुदूर, हों प्रत्यावर्तन
हद से ज्यादा याद आने लगे
नभ में छाये घन गरजने लगे
तिष चातक अंबर टटाने लगे
हरियाली से भू श्रृँगार हुआ
पेड़ पौधे सभी लजाने लगे
चाँदनी रात है चमकने लगी
दिव मेंं तारे टिमटमाने लगे
फल फूलों में छाई तरुणाई
मौसम भी है सुहाने लगे
यौवन के अंकुर फूटे भारी
दीवानगी में दीवाने लगे
सुखविंद्र मगरूर जवानी में
घटा घनघोर है जलाने लगे
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)