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9 Aug 2020 · 1 min read

खिलेगा बीच काँटों के फिर से गुलाब।

शराफत का पहने हैं वो नकाब,
सम्भल कर रहिये जरा तुम जनाब।

ईर्ष्या द्वेष का जहर मन में छिपा,
शक्कर बातों में घोले वो बेहिसाब।

झूठ का तानाबाना बुना हर तरफ,
छिपाकर के सच को समझ बैठे कामयाब।

झूठ की उम्र होती है छोटी बहुत,
बहायेगा इसको एक दिन सच का सैलाब।

दूसरों को गिराकर,मंजिल मिलती नहीं,
ठोकर मिलने पर टूटेंगे झूठे सारे ख्वाब।

सच का दफ़न न कोई कर पाया है,
खिलेगा बीच काँटों के फिर से गुलाब।

सबका हिसाब होता रब के दरबार में,
क्या बोलोगे जब माँगेगा ख़ुदा इसका जवाब।
By: Dr Swati Gupta

3 Likes · 268 Views
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