खिले मैथिली धूप
नेपाल वा बिहार मे,
खिले मैथिली धूप
मैथिल संस्कृत स्रोत अछि,
तत्सम-तद्भव रूप*
मिथिलाक्षर, कैथी रहल,
प्राचीन लिपि स्वरूप
देवनागरी मे लिखू,
नीक मैथिली रूप**
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*मैथिली भाषा भारत व नेपाल के कई भागों में मुख्य रूप से बोली जाती है। जहाँ भारत के बिहार व झारखण्ड राज्यों में यह दरभंगा, मधुबनी, सीतामढ़ी, समस्तीपुर, मुंगेर, मुजफ्फरपुर, बेगूसराय, पूर्णिया, कटिहार, किशनगंज, शिवहर, भागलपुर, मधेपुरा, अररिया, सुपौल, वैशाली, सहरसा, रांची, बोकारो, जमशेदपुर, धनबाद और देवघर जिलों में बोली जाती है| वहीँ नेपाल के आठ जिलों में मैथिली भाषा फल फूल रही है। नेपाल के ये जिले हैं:— धनुषा, सिरहा, सुनसरी, सरलाही, सप्तरी, मोहतरी, मोरंग व रौतहट में भी खूब बोली जाती है। इसके अलावा बँगला, असमिया तथा ओड़िया भाषाओँ के साथ इसकी उत्पत्ति ‘मागधी’ प्राकृत से हुई है। अतः मैथिली कुछ अंशों में बंगला; तो कुछ अंशों में हिंदी भाषा के अधिक निकट है। वैसे मैथिली भाषा का प्रमुख स्रोत संस्कृत भाषा ही है। संस्कृत भाषा के ही शब्द “तत्सम” वा “तद्भव” रूप में जब मैथिली भाषा में प्रयुक्त होते हैं तो बोलने और सुनने में बहुत ही मनमोहक वातावरण निर्माण होता है।
**मैथिली भाषा की लिपि को पहले “मिथिलाक्षर” व “कैथी” लिपि में लिखा जाता था, जो कि बांग्ला तथा असमिया लिपियों से मिलती-जुलती थी। कालान्तर में हिन्दी के विकास के साथ-साथ मैथिली विद्वानों और रचनाकारों द्वारा “देवनागरी” लिपि का प्रयोग होने लगा। आज मैथिली का यही देवनागरी रूप सबको भा रहा है। मिथिलाक्षर लिपि को ही “तिरहुता” व “वैदेही” नामों से भी जाना जाता था। यह मिथिलाक्षर लिपि आज तीन राज्यों में बोली जाने वाली अलग-अलग भाषाओँ असमिया, बांगला व उड़िया की लिपियों की जननी है। इन तीनों भाषाओँ में से उड़िया लिपि कालान्तर में दक्षिण की द्रविड़ भाषाओं के सम्पर्क के कारण मिथिलाक्षर से अलग हुई।