खिलते हरसिंगार
मुक्तक
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भोर समय से पूर्व ही, खिलते हरसिंगार।
वासंती ऋतुकाल में, आता खूब निखार।
श्रीहरि को हैं प्रिय बहुत, पारिजात के पुष्प।
घर आंगन में जब खिलें, महके प्रिय संसार।
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श्वेत पुष्प आभा भरे, सबको भाते खूब।
दृश्य लुभावन प्रिय बहुत, हरी भरी है दूब।
पारिजात के पुष्प ये, महिमा लिए अपार।
जब सम्मुख आते कभी, मिट जाती है ऊब।
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-सुरेन्द्रपाल वैद्य